Monday 18 August 2014

राजस्थान : सातवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी

राजस्थान : सातवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी 




Teju jani143




जब हम सातवीं से तेरहवी शताब्दी के स्थापत्य का पर्यवेक्षण करते हैं तो हम पाते हैं कि वह एक नये राजनीतिक परिस्थिती के अनुरुप ढल जाता है। इसी युग में अर्बुदांचल प्रदेश में परमार, मेवाड़ और बाँगड में गुहिल, शाकाम्भरी में चौहान, ढूँढ़ाड़ में कच्छपाट, जाँगल व मरु में राठौर, मत्स्य व राजगढ़ में गुर्जर प्रतिहार आदि राज्यों का उदय होता है। ये राजवेश बल और शौर्य को प्रधानता देते थे और विस्तार की ओर अग्रसर थे। यही कारण है कि इस काल की वास्तुकला में शक्ति विकास तथा जातीय संगठन की भावना स्पष्ट झलकती है। उदाहरणार्थ नागदा चीखा, लोद्रवा, अर्थूणा, चाटसू आदि कस्बों को घाटियों पहाड़ों या जंगल तथा रेगिस्तान से आच्छादित स्थानों में बसाया गया और इनमें वे सभी साधन जुटाएँ गये जो युद्धकालीन स्थिती में सुरक्षा के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकते थे। इन कस्बों को राजकीय निवास का केन्द्र भी बनाया गया जिससे राजवंशों को आसपास के भागों पर अपना अधिकार स्थापित करने में कोई कठिनाई न हो। इन कस्बों में राजकीय अधिकारियों के आवास तथा धर्मगुरुओं के ठहरने की भी व्यवस्था की गयी थी। नागदा, जो गुहिलों की राजधानी थी, अच्छे पत्थर से मढ़ी हुई सड़कों और नालियों से सुशोभित थी।
वही सड़क आज बाघेला तालाब में छिपी हुई उस युग की दुहाई दे रही है। इस काल में नगरों में बस्तियां किस प्रकार विभाजित थीं और उनकी योजना का सम्पूर्ण ढ़ाँचा कैसा था उसका पूरा चित्रण करना तो बड़ा कठिन है परंतु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि नगर निर्माण में प्रयुक्त स्थापत्य का प्रमुख आधार महाभारत, अर्थशास्र, कामसूत्र, शुक्रनीति, अपराजिताप्रेच्छ आदि ग्रन्थों में दिए गए सिद्धान्तों के अनुरुप था। उदाहरणार्थ नगरों को परकोटों तथा खाईयों से सुरक्षित रखने तथा राजप्रसादों को सुदूर भवनों, मंदिरों और उद्यानों से सुशोभित करने पर बल दिया जाता था। यथासम्भव बस्तियों को क्षेत्रों के अनुसार बाँटा जाता था। इन सांस्कृतिक सूत्रों के अनुपालन हमें मध्ययुगीन वास्तुकला में दिखाई देता है। उदाहरणार्थ वैर सिंह ने ११वीं शताब्दी में आधार नगर के चारों ओर परकोटे की व्यवस्था की थी। इंगदा नामक कस्बे में बस्तियों को वर्ण तथा व्यवसाय के अनुसार बसाया गया था। इसमें ब्राह्मणों के रहने के भाग को ब्रह्मपुरी कहते थे। देलवाड़ा में भी बस्ती का बँटवारा व्यवसाय के अनुरुप किया गया था। 

आमेर १६वीं शताब्दी से १७वीं शताब्दी तक कछवाहों शासकों के शक्ति का केन्द्र था, जिसे एक विशेष, योजना के साथ बसाया गया था। दोनों तरफ की पहाड़ियों की ढ़लानों पर हवेलियाँ तथा उँचे - ऊँचे भवन बनाये गए थे और नीचे के समतल भाग में पानी के कुण्ड, मंदिर, सड़कें, बाजार आदि थे। पहाड़ी रास्तों को संकरा रखा गया था जिससे सुरक्षा की व्यवस्था समुचित रुप से हो सके। उँची पहाड़ियों पर राजभवनों के निर्माण करवाया गया था, परन्तु आगे के युग में जब आमेर में विकास की गुंजाइश नहीं रही तो कछवाहा शासक जयसिंह ने जयपुर नगर को खुले मैदान में चौहड़ योजना के अनुरुप बसाया और उसे चारों ओर दीवार और परकोटों से सुरक्षित किया। नाहरगढ़ को सैनिक शक्ति से सुसज्जित कर सम्पूर्ण मैदानी भाग की चौकसी का प्रबन्धक बनाया गया। जगह - जगह जलाशय, आरामगृह, फव्वारे, नालियाँ - नहर,, चौड़ी सड़कें, चौपड़ आदि बनायी गई जिनके नीर्माण में मुगल तथा राजपूत स्थापत्य का समुचित समन्वय समावेशित किया गया। जयपुर नगर की योजना भी व्यवसाय के अनुरुप बस्तियों की व्यवस्था थी। १२ वीं शताब्दी में जैसलमेर का निर्माण जंगल की समीपता और पानी की सुविधा को ध्यान में रखकर किया गया था। जैसलमेर अलग - अलग वस्तुओं के क्रय - विक्रय का केन्द्र था। समूची योजना, जन जीवन और व्यापार की समृद्धि के हित में थी।

अजमेर चौहानों के समय समृद्ध नगरों में गिना जाता था। हसन निजामी, अबुल फजल, सर टामस रो आदि लेखकों ने अजमेर की सम्पन्न अवस्था पर काफी प्रकाश डाला है। मालदेव ने अजमेर परिवर्किद्धत करने में काफी योग दिया। अकबर और शाहजहाँ ने इसे सुसज्जित करने में कोई कसर न रखी। मराठों ओर अंग्रेजों के शासनकाल तक अजमेर भवन - निर्माण, बाजारों के व्यवस्था आदि वाणिज्य स्थिती में अपना अनूठापन रखता रहा है। दरगाह शरीफ होने से और उसके निकट पुष्कर होने से इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

बूँदी के स्थापत्य में तथा उसके बसाने में पानी के प्राचुर्य का बड़ा हाथ रहा है। जोधपुर और बीकानेर की बसावर में गढ़ निर्माण, परकोटे भवन - निर्माण आदि भौगोलिक परिस्थियों से सम्बन्धित है। जोधपुर में कहीं कहीं ऊँचाईं और ढ़ालों को बस्तियों को बसाने के उपयोग में लाया गया और सड़कों तथा नालियों की योजना उसके अनुकूल की गई। बीकानेर में समतल भूमि में व्यवसाय के अनुसार नगर को बाँटा गया था तथा हाटों और बाजारों को व्यापारिक सुविधा के अनुरुप बनवाया गया। उदयपुर को झील के किनारे घाटियों के अनुरुप व्यवसाय के अनुरुप विचारों से मुहल्लों में बाँटा गया। बस्ती के बीच - बीच कहीं कहीं खेत और बगीचे देकर उसे अधिक आकृष्ट बनाया गया। नगर के बसाने में प्राकार, खाई तथा पहाड़ी श्रेणियों का उपयोग किया गया। पहाड़ी ढ़लान, चढ़ाव और उतार को ध्यान में रखेत हुए सारे नगर को टेढ़ा - मेढ़ा इस तरह बसाया गया कि मध्यकालीन उदयपुर की योजना में कहीं रास्ते या चौपड़ की व्यवस्था नहीं दीख पड़ती। नगरों के में गाँवों की वास्तुकला भिन्न है। गाँव नदी के निकट व किनारे मिलते हैं, उनको लम्बे आकार में खुली बस्ती के रुप में बसाया गया। पहाड़ी इलाके के गाँव पहाड़ी ढ़लान और कुछ ऊँचाईं लिए हुए हैं; उदाहरणार्थ केलवाड़ा, सराड़ा आदि। पहाड़ों और घने जंगलों में आदिवासियों की बस्तियाँ छोटे - छोटे टेकरियों पर दो - चार झोपड़ियों के रुप में बसी मिलती हैं, जिनके चारों ओर काँटें की बाड़ें लगी रहती है जिससे जंगली जानवरों से सुरक्षा भी बनी रहती है। इस प्रकार एक परिवार दूसरे परिवार से विलगता भी बनाये रखते हैं। मेवात के ऐसे गाँवों का जिक्र जोहर ने पुस्तक"तजकिरात"में किया है। रेगिस्तानी गाँवों के पानी की सुविधा को ध्यान में रखकर बसाया जाता है, इसीलिए बीकानेर और जैसलमेर के गाँवों के आगे"सर ' अर्थात जलाशय का प्रयोग बहुधा पाया जाता है, जैसे बीकानेर, जेतसर, उदासर आदि। गाँवों की वास्तुकला में बड़ी इकाई वाले मकान का मुख्य द्वार बिना छत का होता है या बड़े छप्पर के बरामदे से जुड़ा होता है। बीच में खुला आंगन एवं पशुओं की शाल एवं निवास - गृह के कच्चे मकान होते हैं जिन्हें केवल घास - फूस से छा दिया जाया है, साधारण स्थिती के ग्रामीण एक ही कच्चे मकान में गुजारा करते हैं जो अन्न संग्रह, रसोईघर और पशु बाँधनें के काम आता है। ऐसे मकानों के द्वार छोटे रहते हैं जिनमें रोशनदान या खिड़कियों का प्रावधान नहीं होता। जन - जीवन के विकास के साथ राजस्थान में ग्रामीण स्थापत्य की स्थिती बदल रही है और राज्य सरकार खुले, पक्के व हवादार मकानों को बनवाने की व्यवस्था जगह - जगह कर रही है। इसी तरह नगरों के स्थापत्य में भी बड़ी द्रुत गति से बदलाव आ रहा है। प्राचीन नगरों में जो ग्रामीण और नागरिक स्थापत्य का सामंजस्य था,वह विलीनप्राय होता जा रहा है। इनमें आधुनिक संस्कृति प्राचीनता के तत्वों को कम करती जा रही है। 

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